संसद में हाल ही में पारित हुआ वक्फ (संशोधन) विधेयक 2025 केवल एक कानून नहीं, बल्कि एक राजनीतिक रणनीति की पराकाष्ठा प्रतीत होता है — एक ऐसा माध्यम जो सत्तारूढ़ भाजपा की मुस्लिम-केंद्रित राजनीति की झलक दिखाता है।
विरोधाभास देखिए — वह पार्टी जो एक भी मुस्लिम सांसद नहीं रखती, जिसने कभी मुस्लिम महिलाओं को प्रमुख नेतृत्व में जगह नहीं दी, और जो दशकों से गुजरात जैसे राज्यों में मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देने से बचती रही है, वही पार्टी आज गरीब मुसलमानों की भलाई के नाम पर आंसू बहा रही है।
मुसलमानों के लिए “कल्याणकारी” या नियंत्रणकारी विधेयक?
भाजपा का दावा है कि वक्फ संशोधन विधेयक मुस्लिम समुदाय के कल्याण के लिए लाया गया है। लेकिन क्या यह वास्तव में कल्याण है, या सत्ता का एक और उपकरण?
इस विधेयक के जरिए वक्फ बोर्ड को केंद्र सरकार के अधीन लाने का प्रयास किया गया है, जिससे धार्मिक स्वतंत्रता पर सीधा प्रहार होता है। अनुच्छेद 26 में नागरिकों को अपने धार्मिक मामलों का प्रबंधन स्वयं करने का अधिकार है, और यह विधेयक उस अधिकार का खुला उल्लंघन करता है।
मणिपुर जल रहा है, लेकिन संसद “मुस्लिम-मुस्लिम” कर रही है
एक तरफ मणिपुर जैसे संवेदनशील राज्य में 22 महीनों से अशांति जारी है, लेकिन इस मुद्दे पर संसद में चर्चा रात 2 बजे के बाद होती है। दूसरी तरफ, वक्फ विधेयक पर 12 घंटे की बहस होती है। यह भाजपा की प्राथमिकताओं का स्पष्ट संकेत है — मुस्लिम समुदाय पर नियंत्रण, न कि शासन के जरूरी मुद्दों का समाधान।
“सबका साथ, सबका विकास” या सबके बीच भेदभाव?
चाहे वह अनुच्छेद 370 को हटाना हो, तीन तलाक को अपराध बनाना, या CAA 2019 को लागू करना हो — भाजपा की हर नीति का फोकस मुसलमानों को केंद्र में रखकर अपनी हिंदुत्व राजनीति को मजबूती देना रहा है।
सुप्रीम कोर्ट तक ने Prayagraj में बुलडोजर कार्रवाई पर नाराजगी जताई, लेकिन भाजपा का रवैया यही है — मुसलमानों को नियंत्रित करो और राजनीतिक लाभ उठाओ।
“सौगात-ए-मोदी” बनाम सच्चाई
ईद पर मिठाई के डब्बे बांटकर भाजपा ने ‘सौगात-ए-मोदी’ जैसी पहल की, लेकिन उसी समय नवरात्रों के दौरान मांस की दुकानें बंद करवा दी गईं और नमाज़ तक रोकने की धमकियाँ दी गईं। क्या कभी किसी सरकार ने गणेश चतुर्थी जैसे हिंदू त्योहारों पर इस तरह की पाबंदी लगाई?
यह दोहरे मापदंड केवल राजनीतिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देते हैं, न कि राष्ट्रीय एकता को।
संसद में दिखावे की बहस, असली समस्याएं हाशिए पर
जब अमेरिका ने भारत के निर्यात पर 26% टैरिफ लगाया, या जब मतदाता सूचियों में डुप्लिकेट ID की बात उठी, तब सरकार चुप रही। लेकिन वक्फ विधेयक पर भाजपा के नेता मुस्लिम लीग और विभाजन तक पहुंच गए, और कट्टरता का प्रदर्शन करते रहे।
वास्तविक मुद्दे जैसे जनगणना 2021, NCRB की रिपोर्ट, मणिपुर हिंसा, और फेडरल स्ट्रक्चर के संकट — इन पर न सरकार गंभीर है और न ही संसद।
निष्कर्ष: क्या यह लोकतंत्र है या बहुसंख्यकवाद का प्रभुत्व?
भाजपा की राजनीति आज एक खतरनाक मोड़ पर है, जहां मुसलमानों को बार-बार निशाना बनाकर राजनीतिक लाभ की फसल काटने की कोशिश की जा रही है। लोकतंत्र का असली उद्देश्य सभी नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना है, न कि किसी समुदाय को डराकर वोट बैंक साधना।
वक्फ संशोधन विधेयक 2025 न तो मुस्लिम समुदाय के हित में है, न ही भारतीय लोकतंत्र की आत्मा के अनुकूल। यह सिर्फ एक और अध्याय है भाजपा की मुस्लिम-मोहग्रस्त राजनीति का — एक ऐसा मोह जो ना सिर्फ समुदाय को नुकसान पहुंचा रहा है, बल्कि देश की शासन व्यवस्था और सामाजिक ताने-बाने को भी कमजोर कर रहा है।
क्या अब भी समय नहीं आ गया है कि हम असली मुद्दों पर बहस करें — शिक्षा, स्वास्थ्य, बेरोजगारी और आर्थिक नीति पर — न कि धर्म के नाम पर समाज को बांटते रहें?